प्रसार भारती का क्रूर चेहरा ! यह एक और स्टोरी
श्री अग्रवाल समेत कई पत्रकारों की नियुक्ति हुयी थी, वह एक अलग कथा है, उसके भीतर जाएँ तो सरकार की कार्यप्रणाली के उस हिस्से का पता चलता है कि कैसे उच्च पदों का निर्धारण बिना किसी औपचारिकता के, बिना किसी अधिकारी की संस्तुति के, एक सादे कागज पर न जाने कौन कर देता है। यही नहीं सभी को नियुक्ति के समय एक वर्ष के अनुबंध का पत्र भेजा गया और जब जॉइन करने गए तो उस अनुबंध को वापस लेकर छह महीना का थमा दिया गया। मगर सबूत तो नहीं मिट सकता न! यह काम भी किसी के मौखिक आदेश से हुआ। शुरू में यह भी कहा गया कि यह सब भाजपा नेतृत्व के कहने पर हुआ, जिसमे प्रधानमंत्री की भी सहमति रही है, मगर ऐसा नहीं था। ऐसा होता तो किसान चैनल में गए एक पत्रकार को छह महीने बाद ही अचानक कार्यमुक्त नहीं कर दिया जाता।
देखा जाये तो यह पूरा प्रकरण गंभीर जांच का विषय है। नियुक्तियाँ, फिर अनुबंध अधिकारियों की अच्छे काम की संस्तुति के बाद भी अचानक समाप्त करना केंद्र सरकार का ही मखौल उड़ाता है। जो पत्रकार उस समय के अभी भी वहां हैं, उनकी आपबीती भी कम दर्दनाक नहीं है।
श्री अग्रवाल को अगस्त 2018 में कैंसर रोग का शिकार होना पड़ा, हालांकि इससे पहले वह अपनी तकलीफ को एक वर्ष तक राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट में दिखाते रहे। वहाँ के प्रमुख डाक्टर एके दीवान उन्हें कैंसर न होने की बात करते रहे। आखिर में बायोप्सी कराने के सलाह में उन्हें मामूली सा कैंसर बता दिया गया। खैर उनका बड़ा आपरेशन हुआ। उन्होंने दिल्ली के बी एल कपूर अस्पताल में अपना आपरेशन कराया। उसके बाद करीब एक माह बाद वह फिर अधिकारियों की अनुमति से आफिस गए। मगर डाक्टरों की एक माह बाद रेडियेशन की सलाह के बाद वह शारीरिक रूप से उस समय इस लायक नहीं रहे कि आफिस जा सकें।
बाद में वह 2019 में अपने घर बरेली आ गए। 2020 में मार्च में लाक डाउन की घोषणा और कोरोना के प्रकोप के चलते जब सभी जगह work from home की घोषणा हुई तो उन्होंने अपने लिए वर्क फ़्रोम होम मांगा। इस बीच बरेली के सांसद और केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री को पत्र लिखकर श्री अग्रवाल का बरेली दूरदर्शन केंद्र या आकाशवाणी मे तबादला करनेकी सिफ़ारिश की, मगर यह पत्र भी प्रसार भारती की भूल भुलैया टाइप बिल्डिंग में खो गया, जिसका कोई जवाब भी सूचना मंत्री और केंद्रीय श्रम मंत्री को नहीं दिया गया।
इस बीच आशीष अग्रवाल प्रसार भारती के तत्कालीन चेयरममैन ए सूर्यप्रकाश और महानिदेशक श्री मयंक अग्रवाल के संपर्क में रहे। दोनों ने ही उनके प्रति सहानुभूति पूर्वक विचार करने का भरोसा दिलाया। पता यह भी चला कि ए सूर्यप्रकाश ने मोदी सरकार के आने के बाद से प्रसार भारती के सीईओ बने शशि शेखर वेंपति से आशीष अग्रवाल के तबादले की अनुशंसा भी की, मगर केन्द्रीय मंत्रियों से लेकर चेयरमैन तक की सभी बाते और पत्र बेअसर हो गए। मानवीयता और इंसानियत तो बहुत दूर की बात है।
अभी भी श्री अग्रवाल अपने लिए वर्क फ़्रोम होम के साथ साथ बरेली तबादले की मांगा कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के pgportal dot gov dot in पर भी अपनी बात रखी, और बरेली तबादले के साथ तब तक डीडी न्यूज़ के लिए घर से काम करने के अनुरोध को स्वीकार करने का अनुरोध किया। मगर नतीजा वही धाक के तीन पात।
एक बार तो प्रसारभारती के एक छोटे से अधिकारी ने इस बारे में दूरदर्शन न्यूज़ से जवाब तलब करके प्रधानमंत्री के पोर्टल पर भेज दिया, मगर बाद में जब श्री अग्रवाल ने बताया कि यह जवाब तो डीडी न्यूज़ का है, और उसमें साफ साफ लिखा है कि प्रसार भारती कि ओर से इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया जा रहा है। इस जवाब पर प्रसार भारती ने अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं कि है। तब दोबारा फिर वही जवाब भेज दिया गया और इस तरह इस मामले में प्रसार भारती ने प्रधानमंत्री को भी अपनी शब्दावली में उलझा दिया और आगे के लिए इस विषय को समाप्त करने की भी घोषणा कर दी।
आशीष अग्रवाल |
(श्री अग्रवाल का हाल चाल लेने गए एक पत्रकार से हुई बातचीत पर आधारित )