16 जन॰ 2009

सत्य का महास्वांग

आज भारत और सदा चका चौंध से भरी दुनीया में एक नाम बड ज़ोर से गूंज रहा है वह है सत्यम का | इस तेज़ रफ्तार फैक्ट्री ने मेरी नज़र में ऐसा कुछ नही कीया है जो इस देश में और लोग नही कर रहे हैं |हाँ यह ज़रूर हुआ है की इसने अपने कर्मों को जल्दी कुबूल कर लीया है तो इसमे इसको अब सज़ा देने के उन तमाम रास्तों की खोज की जा रही है जो शायद उसे कभी मिह्मा मंडित करने के लिए भी तलाशे गए थे जो रस्ते इस कंपनी को एक वक्त में इतनी ऊंचाई पर ले गए जहाँ से इसको भारत भी छोटा नज़र आने लगा था वोह रस्ते आज इसको भारत का होने भर से ही शर्मसार हैं | सत्यम के पालनहारों ने जब इसका नामकरण कीया होगा तब भी नही सोच होगा की यह नाम सबसे बड़ा असत्य का संकेत हो जाएगा ,क्यूंकि सत्यम को बड़ासत्य ने बनाया न की उसके रामाइलिगा ने | आज सवाल बार बार यह आता है की क्या सत्यम की बुनियाद ही एक बहुत बड़े झूट का स्वांग रचने के लीए की गई थी?एक ऐसा झूट जीसका नाम "सच" रख दीया गया? और इस सच को न केवल भारत बल्कि पुरी दुनीया ने सत्यम के नाम पर स्वीकार कीया और सत्य कीतना बड़ा असत्य है यह शायद अब पता लगा जब सारा जीवन और तन मन धन सत्यम को सौपने वालों के जीवन का वोह सच सामने आ गया जीससे वोह अब तक वाकीफ नही थे मगर इस सत्य को यह देश इतनी खामोशी से स्वीकार कर रहा है मनो यह देश की रीती रेवाजो का एक हिस्सा हो !कौन सही है और कौन ग़लत यह तलाशने का वक्त तो अब आ ही चुका है इस देश आज आतकवाद तो बर्ब्बाद कर ही रहा है मगर आर्थिक आतंकवाद भी हमारे लीए कम बड़ी चुनौती नही है मुझे लगत है यह आर्थिक आतंकवाद शायद उन गोलियों के आतंकवाद से ज्यादा खतर्नआक है जो एक झटके में जन तो ले लेता है यह तो पीढियों को खोकला करने का ऐसा कम है जिसमे कोई भी शिक्षा धरम और पुरानो की के उपदेश भी कम नही आएंगे



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