29 नव॰ 2013

अब राष्ट्रपति से उम्मीद!



कांगेस संसद प्रवीण सिंह एरन को आखिर अपने संसदीय क्षेत्र के विकास के लिए सीधे राष्ट्रपति से गुहार लगानी पड़ी है? आखिर ऐसी क्या वजह हो सकती है?बात सिर्फ इतनी सी नहीं है ठीक नौ महीने बाद फिर उसी गुहार को महामहिम राष्टपति को याद  दिलाने के लिए उन्होंने फिर से एक पत्र लिखा है!राजनितिक नज़रिये से इसकेकई  अर्थ हो सकते हैं?
क्या प्रवीण सिंह  एरन का कांग्रेस नेतृत्व से भरोसा धीरे धीरे कम हो रहा है?या फिर उनका रास्ता बदलने वाला है
?संसदीय परम्पराओं के मुताबिक़ विरोधी दल जब यह
महसूस  करते हैं कि मौजूदा सरकार से बात करने का कोई फायदा भी नहीं तब ऐसी  स्थिति में वह तभी राष्ट्रपति का दरवाज़ा खटखटाते है जब सरकार से उनकी उम्मीदें टूट चुकी होती हैं और संवैधानिक व्यवस्थाएं चरमरा रही हों!खास बात यह है उन्होंने यह पत्र अपने उस पत्र कि याद दिलाने को लिखा है जो उन्होंने नौ महीने पहले बरेली में उन्हें दिया गया था ।

केंद्र में कांग्रेस की सरकार के रहते बरेली के सांसद को आखिर क्यों सीधे रायसीना की पहाड़ियों पर चढ़ना पड़ा ?चुनाव नज़दीक हैं श्री एरन पहले भी अपनी बेबाक राय के लिए चर्चा में रह चुके हैं नेतृत्व से उनकी पटरी बैठती है पर जमती नहीं ,दल भी काफी बदल चुके  हैं यह भी उनके लिए बड़ी बात नहीं है ,वैसे भी चुनाव नज़दीक हैं।बरेली का राजनितिक परिदृश्य बहुत स्पष्ट भी नहीं है। दलों और दिलों के बीच दूरियां ज़बरदस्त हैं यह स्थिति कमोबेश सभी दलों में है कहीं ज्यादा कहीं कम ,मगर  निगाहें ऊपर को ही हैं! 

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