("No person is your friend who demands your silence, or denies your right to grow." —Alice Walker)
दिल से हज़ार बार शुक्रिया साथियों!
ऐसा बहुत कम होता है कि पत्रकार को उसके साथ काम करने वाले साथी आगे बढ़कर उसका समर्थन या प्रशंसा करें ,मुझे इस बात का संतोष है कि मेरे फरुख़ाबाद कार्यकाल में मुझे यह भी मिला,मुझे बिना किसी कारण के, बल्कि नॉएडा बुलाकर दो तीन दिन में कहीं और भेजने की बात जब मेरे साथियों को पता लगी तो उन्होंने उसी समय अमरउजाला के मालिक श्री राजुल माहेश्वरी को एक पत्र लिखा जिसकी प्रति मुझे भी भेजी है,इस पात्र से इस बात का खुलासा होता है करोपरते के नाम पर में क्या हो रहा है और कैसी कैसी प्रवृतियां जनम ले चुकी हैं है,कार्पोरेट के नाम क्या सिर्फ षड़यंत्र और गिरी हुई हरकतें ही मीडिया संस्थानों का कार्यशैली है,वह मीडिया जिससे पूरा देश और सब जगह से निराश आदमी इन्साफ के लिए आस लगाए रहता है ?खुद मीडिया कि क्या हालत है ---यह पत्र इस बात का संकेत भी है कि मीडिया संस्थानों में पनप चुकी दुष्प्रवृतियों पर अंकुश के लिए कोई नियामक संस्था होनी चाहिए, मीडिया संस्थान पूरी तरह से सरकार और जनता के पैसे पर ही राज करते है:-
चाहें मधुकर पांडेय द्वारा संपादक श्री दिनेश जुयाल पर की गई टिप्पणी हो या श्री प्रमोद दबे का मामला। फिर एक-एक कर हमारे सबसे अधिक रेवन्यू देने वाले क्षेत्र कायमगंज और कमालगंज से पुराने प्रतिनिधियों को हटाना और उनके स्थान पर ऐसे लोगों का चयन करना, जो किसी भी दृष्टि से कंपनी के हित में नहीं थे। उनके एक वर्ष का कार्यकाल दर्शाता है कि उन्होंने कंपनी के लिए कितना कार्य किया। हालांकि इन सब दबाव के चलते मैंने सदैव जिस गति से कार्य करना चाहिए, किया। इसमें मैं कंपनी का धन्यवाद देना चाहता हूं।
फर्रुखाबाद जनवरी में श्री आशीष अग्रवाल ने जब फर्रुखाबाद कार्यालय का चार्ज लिया, तब संपादकीय की स्थिति काफी खराब थी। काफी दिनों तक मैंने इनसे दूरी बनाए रखी। क्योंकि पिछले अनुभव मेरे संस्मरण में थे। लेकिन श्री अग्रवाल ने सबको एक साथ लेकर चलने का प्रयास किया लेकिन कुछ लोगों के मन में कुछ और ही था। वह कंपनी के नियमानुसर नहीं, बल्कि अपने अनुसार कंपनी को चलाने का प्रयास कर रहे थे। जब उनकी दाल न गली तो वह समझ गए कि झूठी व फर्जी खबरों से अब काम नहीं चलेगा। इसलिए हताश होकर वह एक-एक करके किनारा करते चले गए। श्री आशीष अग्रवाल ने परिवार की मुखिया की तरह एक-एक लोगों को स्नेह और प्यार की डोर में ऐसा बांधा कि न चाहते हुए भी लोग काम में जुटे और नया अंजाम देने की ठानी। हालांकि हमारा सर्कुलेशन दैनिक जागरण की तुलना में 20 प्रतिशत है। लेकिन श्री आशीष अग्रवाल की रात-दिन की मेहनत के परिणाम से जागरण भी परेशान नजर आया।
कायमगंज और कमालगंज के गिरते बिजनेस से सभी परेशान थे। लेकिन श्री आशीष अग्रवाल जी के प्रयास से मधुसूदन अरोरा को पुनरू काम करने का मौका मिला, जिसने विगत एक माह में लगभग तीन लाख रुपए का कायमगंज तहसील से विज्ञापन दिया और वह संपादकीय, विज्ञापन, सर्कुलेशन तीनों के लिए कार्य कर रहे हैं, जिसके परिणाम सामने आने लगे हैं। कमालगंज ने तो काम करने से हाथ खड़े कर दिए थे। माहौल अब ऐसा बन गया है कि कार्य ने गति पकडनी शुरू कर दी है। अब फर्रुखाबाद कार्यालय के सभी सदस्य एक परिवार में काम करना महसूस करते हैं। यह सब देन श्री आशीष अग्रवाल जी की है।
मैंने विगत 16 वर्षों से इतना कार्य करने वाला व कंपनी के प्रति समर्पित व्यक्ति को आज तक न देखा था, जो सुबह 10 बजे से रात 12 बजे तक और कभी-कभी तो 1 बजे तक सबको एक डोर में बांधे रखा।
कार्य संपन्न होने के बाद सब हंसी-खुशी घर को गए। लोग अब विज्ञप्ति देने के लिए स्वयं चलकर आने लगे और कइयों ने अपनी पीड़ा को इनके समक्ष रखा, जिनका इन्होंने बड़े प्रेम से निस्तारण किया। अब शहर में अखबार के प्रति लोगों का नजरिया एक निष्पक्ष अखबार के रुप में किया जाता है, जिसका प्रभाव विज्ञापन पर भी पड़ा है। छोटे व क्लासीफाइड विज्ञापन, जो बिल्कुल जाना बंद हो गए थे, जिनके लिए घर-घर जाना पड़ता था। आज वह कार्यालय आने लगे हैं। इस बदलाव की बयार में अमर उजाला अपनी गति की ओर अग्रसर है। स्थितियां अनुकूल रहीं तो अमर उजाला अखबार दैनिक जागरण के बराबर खड़ा होगा। ऐसा मेरा विश्वास है। यह विश्वास मेरा ही नहीं है, बल्कि आज आम लोगों में यह चर्चा है कि अमर उजाला एक निष्पक्ष समाचार पत्र है।
महोदय, मैं सुझाव और सलाह देने के लिए भले ही योग्य न हूं लेकिन मैंने अपने दिल की बात को आपके समक्ष रखने की हिम्मत की है। हो सकता है इसका परिणाम मेरे लिए ठीक न हो लेकिन सच्चाई को बयां न करना सबसे बड़ा पाप है।
भवदीय
अवधेश कुमार शुक्ला 9675202037 विष्णु नरायन दीक्षित 9919832871 जितेन्द्र दीक्षित 9336929190 आनदं मिश्रा 9455521422 नितेश सक्ेसेना 9455064555
(डॉ अवधेश शुक्ल फर्रुखाबाद के भारतीय महाविद्यालय डिग्री कालेज में पत्रकारिता के प्राध्यापक हैं और अमरउजाला से भी लम्बे समय से जुड़े हैं ,यह पात्र उन्होंने सभी कि और और सहमति से लिखा है जो मुझे मेल से भेजा गया है )
दिल से हज़ार बार शुक्रिया साथियों!
ऐसा बहुत कम होता है कि पत्रकार को उसके साथ काम करने वाले साथी आगे बढ़कर उसका समर्थन या प्रशंसा करें ,मुझे इस बात का संतोष है कि मेरे फरुख़ाबाद कार्यकाल में मुझे यह भी मिला,मुझे बिना किसी कारण के, बल्कि नॉएडा बुलाकर दो तीन दिन में कहीं और भेजने की बात जब मेरे साथियों को पता लगी तो उन्होंने उसी समय अमरउजाला के मालिक श्री राजुल माहेश्वरी को एक पत्र लिखा जिसकी प्रति मुझे भी भेजी है,इस पात्र से इस बात का खुलासा होता है करोपरते के नाम पर में क्या हो रहा है और कैसी कैसी प्रवृतियां जनम ले चुकी हैं है,कार्पोरेट के नाम क्या सिर्फ षड़यंत्र और गिरी हुई हरकतें ही मीडिया संस्थानों का कार्यशैली है,वह मीडिया जिससे पूरा देश और सब जगह से निराश आदमी इन्साफ के लिए आस लगाए रहता है ?खुद मीडिया कि क्या हालत है ---यह पत्र इस बात का संकेत भी है कि मीडिया संस्थानों में पनप चुकी दुष्प्रवृतियों पर अंकुश के लिए कोई नियामक संस्था होनी चाहिए, मीडिया संस्थान पूरी तरह से सरकार और जनता के पैसे पर ही राज करते है:-
....लेकिन सच्चाई को बयां न करना सबसे बड़ा पाप है !
फर्रुखाबाद कार्यालय में श्री आशीष अग्रवाल जी के आने से पहले शहर के विज्ञापनदाताओं के साथ जिस तरह अनदेखी की गई। उससे न केवल विज्ञापन में गिरावट हुई, बल्कि लोगों ने अमर उजाला से संपर्क तोडना शुरू कर दिया। कमोवेश यह स्थिति संपादकीय में रोज-रोज हुए नित नए फरमानों व यहां कार्य करने वाले लोगों की हिटलरशाही का नतीजा थी। इस स्थिति में सुधार की एक किरण तब दिखाई दी, जब कंपनी की ओर से प्रमोद कुमार दबे को फर्रुखाबाद कार्यालय का जिम्मा सौंपा गया लेकिन जिस तरह वह लोगों के षणयंत्र का शिकार हुए। यह किसी से छिपा नहीं है। इस दौरान मुझ पर भी सारे दांव खेले गए। लेकिन ईश्वर की कृपा और आपके आशीर्वाद से मैं हर मामले में बेदाग साबित हुआ।चाहें मधुकर पांडेय द्वारा संपादक श्री दिनेश जुयाल पर की गई टिप्पणी हो या श्री प्रमोद दबे का मामला। फिर एक-एक कर हमारे सबसे अधिक रेवन्यू देने वाले क्षेत्र कायमगंज और कमालगंज से पुराने प्रतिनिधियों को हटाना और उनके स्थान पर ऐसे लोगों का चयन करना, जो किसी भी दृष्टि से कंपनी के हित में नहीं थे। उनके एक वर्ष का कार्यकाल दर्शाता है कि उन्होंने कंपनी के लिए कितना कार्य किया। हालांकि इन सब दबाव के चलते मैंने सदैव जिस गति से कार्य करना चाहिए, किया। इसमें मैं कंपनी का धन्यवाद देना चाहता हूं।
फर्रुखाबाद जनवरी में श्री आशीष अग्रवाल ने जब फर्रुखाबाद कार्यालय का चार्ज लिया, तब संपादकीय की स्थिति काफी खराब थी। काफी दिनों तक मैंने इनसे दूरी बनाए रखी। क्योंकि पिछले अनुभव मेरे संस्मरण में थे। लेकिन श्री अग्रवाल ने सबको एक साथ लेकर चलने का प्रयास किया लेकिन कुछ लोगों के मन में कुछ और ही था। वह कंपनी के नियमानुसर नहीं, बल्कि अपने अनुसार कंपनी को चलाने का प्रयास कर रहे थे। जब उनकी दाल न गली तो वह समझ गए कि झूठी व फर्जी खबरों से अब काम नहीं चलेगा। इसलिए हताश होकर वह एक-एक करके किनारा करते चले गए। श्री आशीष अग्रवाल ने परिवार की मुखिया की तरह एक-एक लोगों को स्नेह और प्यार की डोर में ऐसा बांधा कि न चाहते हुए भी लोग काम में जुटे और नया अंजाम देने की ठानी। हालांकि हमारा सर्कुलेशन दैनिक जागरण की तुलना में 20 प्रतिशत है। लेकिन श्री आशीष अग्रवाल की रात-दिन की मेहनत के परिणाम से जागरण भी परेशान नजर आया।
कायमगंज और कमालगंज के गिरते बिजनेस से सभी परेशान थे। लेकिन श्री आशीष अग्रवाल जी के प्रयास से मधुसूदन अरोरा को पुनरू काम करने का मौका मिला, जिसने विगत एक माह में लगभग तीन लाख रुपए का कायमगंज तहसील से विज्ञापन दिया और वह संपादकीय, विज्ञापन, सर्कुलेशन तीनों के लिए कार्य कर रहे हैं, जिसके परिणाम सामने आने लगे हैं। कमालगंज ने तो काम करने से हाथ खड़े कर दिए थे। माहौल अब ऐसा बन गया है कि कार्य ने गति पकडनी शुरू कर दी है। अब फर्रुखाबाद कार्यालय के सभी सदस्य एक परिवार में काम करना महसूस करते हैं। यह सब देन श्री आशीष अग्रवाल जी की है।
मैंने विगत 16 वर्षों से इतना कार्य करने वाला व कंपनी के प्रति समर्पित व्यक्ति को आज तक न देखा था, जो सुबह 10 बजे से रात 12 बजे तक और कभी-कभी तो 1 बजे तक सबको एक डोर में बांधे रखा।
कार्य संपन्न होने के बाद सब हंसी-खुशी घर को गए। लोग अब विज्ञप्ति देने के लिए स्वयं चलकर आने लगे और कइयों ने अपनी पीड़ा को इनके समक्ष रखा, जिनका इन्होंने बड़े प्रेम से निस्तारण किया। अब शहर में अखबार के प्रति लोगों का नजरिया एक निष्पक्ष अखबार के रुप में किया जाता है, जिसका प्रभाव विज्ञापन पर भी पड़ा है। छोटे व क्लासीफाइड विज्ञापन, जो बिल्कुल जाना बंद हो गए थे, जिनके लिए घर-घर जाना पड़ता था। आज वह कार्यालय आने लगे हैं। इस बदलाव की बयार में अमर उजाला अपनी गति की ओर अग्रसर है। स्थितियां अनुकूल रहीं तो अमर उजाला अखबार दैनिक जागरण के बराबर खड़ा होगा। ऐसा मेरा विश्वास है। यह विश्वास मेरा ही नहीं है, बल्कि आज आम लोगों में यह चर्चा है कि अमर उजाला एक निष्पक्ष समाचार पत्र है।
महोदय, मैं सुझाव और सलाह देने के लिए भले ही योग्य न हूं लेकिन मैंने अपने दिल की बात को आपके समक्ष रखने की हिम्मत की है। हो सकता है इसका परिणाम मेरे लिए ठीक न हो लेकिन सच्चाई को बयां न करना सबसे बड़ा पाप है।
भवदीय
अवधेश कुमार शुक्ला 9675202037 विष्णु नरायन दीक्षित 9919832871 जितेन्द्र दीक्षित 9336929190 आनदं मिश्रा 9455521422 नितेश सक्ेसेना 9455064555
(डॉ अवधेश शुक्ल फर्रुखाबाद के भारतीय महाविद्यालय डिग्री कालेज में पत्रकारिता के प्राध्यापक हैं और अमरउजाला से भी लम्बे समय से जुड़े हैं ,यह पात्र उन्होंने सभी कि और और सहमति से लिखा है जो मुझे मेल से भेजा गया है )
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