झांकी दिखाते विनय और अंजु अपनी माँ व अंजली अग्रवाल |
किसी भी धार्मिक त्यौहार के अवसर पर होने वाले आयोजन समाज की सहभागिता से ही होते हैं ।वह भी होली और ईद का त्यौहार खास तौर से भारत मे मिलजुलकर मनाने की ही परंपरा है । मगर आज यह परंपरा केवल अपने समाज तक नाममात्र के लिए ही जीवित है । हालांकि वैदिक काल मे त्यौहारों को मिलजुल कर मनाने की ही परंपरा थी ,मगर बदलते समय के समाज और दौर के साथ यह अब इतनी सीमित हो गयी कि होली और ईद के मौके पर सभी धर्मों के लोग एक साथ आते तो हैं ,मगर गंभीर प्रयासों के बाद औपचारिक रूप से ,यह एक हकीकत है ।बाकी कहीं छोटे मोटे आयोजन होते भी हैं तो परिवार तक ही सीमित होते हैं,समाज की सहभागिता उसमें नहीं होती ।
पीके थामस के साथ लेखक आशीष अग्रवाल |
बेहद मिलनसार सहृदयी और स्वभाव के सरल केरल निवासी थामस साहब आयकर विभाग से रिटायर होने के बाद प्रियदर्शिनी नगर मे ही अपना आशियाना बनाकर रहने लगे । उनकी पार्टी का मेन्यू खास बरेली के स्वाद वाला ठेठ बनियों वाला होता है । आमतौर पर धार्मिक त्यौहार पर होने वाले ऐसे आयोजन सामाजिक सहयोग यानि चंदे से होते हैं । यह हकीकत है । अमूमन होते ही नहीं हैं । क्रिसमस वाले दिन थामस परिवार सुबह को चर्च मे होने वाली सामूहिक प्रार्थना सभा मे हिस्सा लेने के बाद अपने घर के आयोजन मे जुट जाते हैं ।
इसके पीछे क्या सोच है -थामस साहब कहते हैं कि त्यौहारों को मिलजुल कर मनाए जाने की परंपरा नयी नहीं है ,मगर आज लुप्त हो गयी है । वैसे उनके अपने समाज के भी कार्यक्रम होते हैं और एक दूसरे के घर जाकर बधाई उपहार देने का भी चलन रहता ही है ।मगर वह इसके बजाये जिस समाज मे रहते हैं उन सब के साथ मिलकर अपनी खुशी बांटने मे ही आनंद महसूस करते हैं । अपने समाज के साथ तो सब ही मनाते हैं मगर सबके साथ अपनी खुशी बांटना कुछ अलग ही है । थामस साहब की पार्टी का उनके मित्रों परिचितों और पड़ोसियों को हर क्रिसमस पर इंतजार रहता है । यह विचार कैसे आया ?इसके जवाब मे थामस साहब बताते हैं बस यही सोच थी कि अपनी खुशी मे सबको कैसे शरीक किया जाये और इसी विचार के तहत यह आयोजन शुरू हुआ तो चल ही रहा है ।
इसमें दो राय नहीं कि आसपास के जिस परिवेश मे हम रहते है, सभी पारिवारिक अवसरों के अलावा धार्मिक त्यौहारों पर समाज मे ऐसे आयोजान होने लगें तो सामाजिक समरसता एक अध्याय शुरू हो सकता है । जाती क्स्जेटर और रिश्तों की दूरियाँ नज़दीकियों मे बदल जाएंगी और तब सामाजिक महुयल पारिवारिक नज़र आएगा ,ठीक वैसा जैसा कि पड़ोस रिश्ते से बड़ा और खास होता है ।
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