अयोध्या में सात दिसंबर 1992 को एक अजीब सा सन्नाटा था। होगा पूरे देश में दहशत और अशांति हिंसा का माहौल ,मगर अयोध्या एक बहुअत बड़ा कारज संपन्न हो खुमारी उत्तर रहां था। बेटी विदा होने के बाद जैसे सारे घराती उनींदे से होते हैं ,न भूख न प्यास न काम धंधे पे जाने की जल्दी लिहाजा सोकर भी क्या उठना ,बा सकुच ऐसा ही था अयोध्या का माहौल। हमें तो अपनी ड्यूटी बजानी ही थी, सो नौ बजे तैयार हो गए थे। पता लगा कि राजयपाल के सलाहकार रोमेश भंडारी आ रहे हैं। पहुँच गए। हमारे सामने ही उनको लेकर अफसरों का काफिला वहां आया। आते ही ज्यादातर ने इधर उधर देखते हुए बड़े संकोच और एक तरह से भयभीत कि कोई देख तो नहीं रहा ,विराजमान श्री रामलला को को चुपके से प्रणाम निवेदन कर लिया। बस पलक झपकते का दृश्य था। कैमरे तो वर्जित थे। किसी से कोई बातचीत नहीं। क्या कहना ,क्या सुनना , क्या निर्देश और कौन सी कानून व्यवस्था की चर्चा। क्योंकि सब तो कवायद हो ही रही थी। हो चुकी थी। किसी ने नहीं पुछा क्या हुआ कब हुआ कैसे हुआ ,क्यों हुआ और भी कुछ। सब मूक भाषा के संवाद। बस निगाहों ही निगाहों में ! कुछ देर के बाद सब उस टीले नुमा चबूतरे से उतरे, जिस मलवे पर टेंट में नया राममंदिर बना ,उस पर से वापस उतर कर गाड़ियों में बैठे और चले गए।
अयोध्या मे उस दिन गजब का सन्नाटा था । एक अजीब सी आशंका और रहस्यमय शांति थी। समझ सब रहे थे । एक दूसरे से जानना भी चाहते थे ,मगर संकोच के मारे पूछ नहीं रहे थे । सबके जेहन मेन सवाल यही घुमड़ रहा था आखिर यह सन्नाटा कितना गहराएगा और आगे होगा क्या ? पूछ कोई किसी से नहीं रहा था । जानते थे कोई क्या बताएगा ? एक और डर था । वह यह कि कहीं किसी भी पल कोई नया एक्शन न हो जाये ? धार लिए जाएँ ?लिहाजा घरॉन के बाहर भी खड़े होने मे लोग संकुचा रहे थे । हाँ जो चार लोग सड़कों पर आए भी थे, वह ऐसे सुरक्षित स्थानों पर मसलन राममन्दिर आंदोलन के अगुआ संतों के अखाड़ों मे जमा हो गए थे । बाकी अयोध्या की तंग गलियों का सन्नाटा तो केवल वहां दौड़ रही सरकारी गाड़ियां ही तोड़ रही थीं। न कोई धकड़ी ,न छापे मारी ,बस इधर से उधर दौड़ती गाड़ियों का मकसद क्या था ,कोई नहीं जानता था, सिवाय इसके कि सरकार बहुत सतर्क और एक्टिव है ,न जाने कब क्या हो जाए यह दहशत फैलाने के लिए तो काफी था यह मंजर !
उस दिन अयोध्या मे पसरा सन्नाटा इतना जबर्दस्त था कि जब भूख मिटाने के लिए किसी दुकान की तलाश शुरू की तो सब बंद ,फिर बस कोई खाडा या आश्रम ही था, जहां प्रसाद पाकर भूख मिटाने का अंतिम अवसर मेरे पास था । और वही किया। कहते हैं कि अयोध्या मे कोई भूखा नहीं रहता। राजा दशरथ के काल से यह वरदान राम की अयोध्या को प्राप्त है।
-आशीष अग्रवाल
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